बहु भागीय सेट >> गजनन्दन लाल के कारनामे गजनन्दन लाल के कारनामेविष्णु प्रभाकर
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प्रस्तुत है बालपयोगी कहानियाँ गजनन्दन लाल के कारनामे...
Gajnandanlal Ke Karname-A Hindi Book by Vishnu Prabhakar
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
गजनन्दन के बाबाजी बड़े प्रसिद्ध लेखक हैं। बच्चों के लिए कहानियाँ लिखते हैं, कवितायें लिखते हैं। फिर बच्चों को घेरकर उनको सुनाते हैं। चुटकुले भी सुनाते हैं। एक काम और करते हैं। उसे वे जादू का खेल कहते हैं। वे बच्चों से कहते हैं, ‘‘क्या तुम अपने दाँत बाहर निकाल सकते हो ?’’
बेचारे बच्चे अपने दाँतों को छूकर देखते हैं, खींचते हैं, लेकिन दाँत ऐसे उखड़ जाएँ, तो फिर दाँत कैसे ? बच्चे हार मानकर कहते हैं, ‘‘नहीं बाबाजी, ! हम नहीं निकाल सकते।’’
तब बाबा कहते हैं, ‘‘मेरे दाँत जादू के हैं जब चाहे तोड़ लेता हूं, जब चाहे जोड़ लेता हूँ।’’ और यह कहते-कहते वे अपने आघे के चार दांत निकाल कर बच्चों को दिखाते हैं, हँसते हैं। बच्चे चकित-विस्मित उन दाँतों को देखते हैं। उनके मुंह को देखते हैं।
लल्ली कहती है, ‘‘बाबाजी, फिर लगाओ दाँत।
बाबा लगा लेते हैं। कन्हैया कहता है, ‘‘बाबा, फिर निकालो दाँत !’’
बाबा निकाल लेते हैं।
फिर सब एक-दूसरे की ओर देखते हैं। बाबा की ओर देखते हैं और हंसते हैं। बाबा भी हँसते हैं और कहते हैं, ‘‘है न जादू के दाँत! तुम्हारे पास हैं ऐसे दाँत ?’’
गजनन्दन अब इतना बच्चा तो नहीं है कि बाबा के जादू से चकित रह जाए ! वह जानता है कि बाबा के आगे के चार दाँत खराब हो गए थे। उन्होंने उन्हें निकलवा दिया और नकली दाँत बनवाकर लगवा लिये। उन्हीं को निकाल-निकाल कर जादू दिखाते रहते हैं।
एक दिन जब बाबा अपना जादू दिखा-दिखाकर बच्चों को हँसा रहे, थे तो वह बोल उठा, ‘‘बाबा जी, जरा ऊपर के दाँत भी निकालकर दिखाइये तो !’’
बाबा जी ने कैसी कड़ी नजर से उसे देखा था ! कहा था, ‘‘चुप वे हाथी के बच्चे ! हम बच्चों को जादू दिखा रहे हैं तुझे नहीं। तू बड़ा हो गया है।’’
बेचारे बच्चे अपने दाँतों को छूकर देखते हैं, खींचते हैं, लेकिन दाँत ऐसे उखड़ जाएँ, तो फिर दाँत कैसे ? बच्चे हार मानकर कहते हैं, ‘‘नहीं बाबाजी, ! हम नहीं निकाल सकते।’’
तब बाबा कहते हैं, ‘‘मेरे दाँत जादू के हैं जब चाहे तोड़ लेता हूं, जब चाहे जोड़ लेता हूँ।’’ और यह कहते-कहते वे अपने आघे के चार दांत निकाल कर बच्चों को दिखाते हैं, हँसते हैं। बच्चे चकित-विस्मित उन दाँतों को देखते हैं। उनके मुंह को देखते हैं।
लल्ली कहती है, ‘‘बाबाजी, फिर लगाओ दाँत।
बाबा लगा लेते हैं। कन्हैया कहता है, ‘‘बाबा, फिर निकालो दाँत !’’
बाबा निकाल लेते हैं।
फिर सब एक-दूसरे की ओर देखते हैं। बाबा की ओर देखते हैं और हंसते हैं। बाबा भी हँसते हैं और कहते हैं, ‘‘है न जादू के दाँत! तुम्हारे पास हैं ऐसे दाँत ?’’
गजनन्दन अब इतना बच्चा तो नहीं है कि बाबा के जादू से चकित रह जाए ! वह जानता है कि बाबा के आगे के चार दाँत खराब हो गए थे। उन्होंने उन्हें निकलवा दिया और नकली दाँत बनवाकर लगवा लिये। उन्हीं को निकाल-निकाल कर जादू दिखाते रहते हैं।
एक दिन जब बाबा अपना जादू दिखा-दिखाकर बच्चों को हँसा रहे, थे तो वह बोल उठा, ‘‘बाबा जी, जरा ऊपर के दाँत भी निकालकर दिखाइये तो !’’
बाबा जी ने कैसी कड़ी नजर से उसे देखा था ! कहा था, ‘‘चुप वे हाथी के बच्चे ! हम बच्चों को जादू दिखा रहे हैं तुझे नहीं। तू बड़ा हो गया है।’’
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